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निर्धन और और जरूरतमंद व्यक्तियों के लिये-For Needy People

डाॅ. सनत कुमार दलाल  
M.S. FICS.(U.S.A.)
सर्जिकल स्पेशलिस्ट.
एक वरिष्ठ चिकित्सक के द्वारा एक अदम्य प्रयास और समाज सेवा व निर्धन और और जरूरतमंद व्यक्तियों के लिये
बवासीर (अर्श/पाइल्स) फिशर (विदर) रक्त स्राव एवं फिस्चुला (नालव्रण) का उपचार

वर्तमान में सामान्य तथा विशेषकर सामान्य वर्ग के पुरूषों में तम्बाकू, गुटके, पान मसालों और शराब का सेवन एक आदत बनता जा रहा है। ये व्यसन सेवनकर्ता की पाचन, प्रणाली को दुष्प्रभावित करते हैं जबकि इनका सेवन करने वाला सोचता है कि इनसे भोजन अच्छी तरह पच रहा है और इनसे उसका पेट साफ हो जाता है। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है, इन्हीं व्यसनो के कारण व्यक्ति को कब्ज, मल का जम जाना तथा पेट के अन्य विकारों का सामना करना पड़ता है। ये लक्षण हैं, उदर रोगों के मल त्यागने के समय व्यक्ति को जोर लगाना पड़ता है जो अन्त मे फिशर में बदल जाता है, मलद्वार में कट लग जाती है, अर्श में सूजन आ जाती है।

इलाज के लिए धन का अभाव बीमारी की उपेक्षा और लापरवाही के कारण बीमारी बढ़ती जाती है। बीमारी के जटिल हो जाने पर जब मरीज चिकित्सक से सम्पर्क करता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है मरीज अपनी तकलीफ बढ़ाने के साथ-साथ लेबोरेटरी से जाँच के खर्च भी बढ़ाता जाता है। इनका परिणाम होता है, बीमार के शरीर में लगातार बढ़ती कमजोरी और अस्पतालों के चक्कर लगाने में जीवन के अमूल्य समय की बर्बादी।

उल्लेखित व्याधियाँ महिलाओं को भी होती है। प्रसवकाल के इर्दगिर्द बराबर ध्यान नहीं देना, उपवास और खानपान में पौष्टिक तत्वों का अभाव भी इन व्याधियों को जन्म देता है।

सामान्य तथा अस्पतालों में बीमार के पहुँचने पर उसकी विभिन्न जाँचों द्वारा इलाज आरम्भ किया जाता है। रोग की जटिलता और उपभोक्ता कानून के प्रकाश में चिकित्सक ऐसे रोगियों का उपचार करने से बचते हैं। बीमार चूंकि अपने गुप्तांगो में पीड़ा अनुभव करता है तो वह लज्जावश अन्यत्र इलाज कराने में भी संकोच करता है। इन परिस्थितियों में व्यक्तिगत लज्जा, सामाजिक सोच और गरीबी एक अभिशाप के रूप में रोगी को पस्त कर देती है।

मैं जीवन के इस पड़ाव और मोड़ पर पहुँच कर मुझे न यश, प्रसिद्धि की लालसा रही और न पैसे का मोह। किन्तु यह भी अनुभव किया है कि अपात्रो को दया का पात्र बनाना चिन्ताकारक और नाहक तनाव उत्पन्न करता है। इसलिए अपने पास उपचार कराने आए बीमार से संवाद कर उसकी थाह लेने का प्रयास करता हूँ ताकि निश्शुल्क उपचार प्राप्त करने वाला उसका हकदार है अथवा नही। अपनी सेवानिवृत्ति के 22 वर्षो बाद भी मै अपने चिकीत्सकीय कत्र्तव्य से विमुख नही हुआ हूँ। असहाय और अन्य स्थानो से निराश होकर अपने पास पहुँचने वाले उपचारार्थियो को मै सब बाते भुला उसे स्वस्थ जीवन जीने का हकदार मानकर अपने कत्र्तव्य पालन मे जुट जाता हँू। अपने अनुभव एवं कार्य निपुणता द्वारा रूग्ण व्यक्ति को स्वस्थ देखने की अभिलाषा को साकार देखने के लिए सक्रिय हो उठता हूूँ। अन्य स्थानों से निराश हुए व्यक्ति के आशा का संचार करना, उसमें और उसके रिश्तेदारो मे सकारात्मक भावनाओं को जगाना मै इलाज करने के पूर्व फर्ज मानता हूँ। उनका विश्वास अर्जित कर आवश्यक चिकत्सकीय औपचारिकताएं सर्जरी के पहले सम्बन्धित रूग्ण व्यक्ति के निर्धारित पत्र पर हस्ताक्षर लेना, भावी जटिलताएं आदि की समझाइश देना आदि पूरी कराना जो आवश्यक है, करता हूँ। इतनी प्रक्रिया के बाद बीमार के शरीर के प्रभावित अंग पर सुन्न करने की दवाई लगाकर तुरंत अर्श-मर्ज निकाल देता हूं। इससे मरीज को दर्द भी अनुभव नही होता। रोग से मुक्त होने के बाद बीमार के चेहरे पर जो सन्तोष और चैन देखता हूँ, उसे मै शब्दो का जामा नही पहना सकता।

अपने क्लिनिक से रोगी को रवाना करने के पहले उसे और उसके साथ आए साथियो को सर्जरी उपरान्त सावधानी रखने के निर्देश और समझाइश के आवश्यक औषधियाँ भी दी जाती है। विशेषकर वे मरीज जो दूर दराज के देहाती क्षेत्रो से आते है, जो महंगे इलाज का खर्च वहन नही कर सकते, उनका स्वस्थ जीवन के प्रति आश्वस्त होने की तसल्ली के साथ घर के लिए प्रस्थान करते देखने का सन्तोष किसी भी संवेदनशील, चिकित्सक का बड़ा पारितोषिक होता है। इसी अनुभूमि के साथ जोखिम उठाकर किये गये उपचार को मैं प्रभु की सेवा समझता हूँ। क्लिनिक से घर पहुँचने के बाद भी रोगी से सम्पर्क बना रहता है। दुबारा जाँच की जरूरत न हो तो भी इलाज पूरा होने तक रोगी फोन द्वारा भी जुड़ा रहता है। फोन पर जब रोगी के कृतज्ञतापूर्ण शब्द सुनाई देते हैं तो मुझे उसमें अपने मिशन की, जीवन के ध्येय की पूर्णता की अनुगूंज मुझे सुनाई देती है।

 

डाॅ. सनत कुमार दलाल क्लीनिक

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